। गत दिनों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली जीत ने कांग्रेस पार्टी में नई ऊर्जा का संचार किया है। पार्टी को यह जीत ऐसे समय मिली है जब 2019 के आम चुनाव में चार महीने का समय भी नहीं बचा है। इस परिप्रेक्ष्य में इन चुनावों ने सत्ताधारी पार्टी भाजपा को यह सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया है कि अगले आम चुनाव में उसका असली मुकाबला कांग्रेस से होने वाला है। हालांकि यदि छत्तीसगढ़ को छोड़ दें तो दोनों बड़े प्रदेश मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के वोटों का प्रतिशत मात्र 0.5 से 1.5 रहा लेकिन हाशिये पर पड़ी कांग्रेस को सत्ता मिलने से उसको संजीवनी जरूर मिल गयी। यह जीत उस संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाती है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में 2014 से ही भाजपा ने पंजाब और कर्नाटक को छोड़कर अनेक राज्यों में होने वाले चुनावों में अपना परचम लहराया। भाजपा को इन तीनों राज्यों में भी अपनी जीत का पूरा भरोसा था किंतु नतीजों ने उसे बता दिया है कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को इस हद तक नजरअंदाज करना तर्कसंगत नहीं है। इन तीन राज्यों की जीत से कांग्रेस को दोहरा फायदा हुआ। छत्तीसगढ़ सहित दो बड़े प्रदेशों में सत्ता मिली दूसरे पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अगले आम चुनाव के लिए नेता बना गये। क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से जब-जब भाजपा से मुकाबले के लिए महागठबंधन की बात की जाती है थी तब-तब उसके नेता की तलाश की जाती थी।
अब यह तलाश काफी हद तक राहुल गांधी के रूप में पूरी होती दिखाई दे रही है। इसकी वजह थी कि सारी क्षेत्रीय पार्टियों का महागठबंधन तभी ठोस विकल्प साबित हो सकता था जब कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी उसकी अगुवाई करती। इन चुनावों से पहले क्षेत्रीय पार्टियों के क्षत्रप महागठबंधन की अगुवाई के लिए अपने- अपने दावे ठोकते थे लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाते थे। उनको लगता था कि जब कांग्रेस की इतनी दुर्दशा है तो वे कैसे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी को अपना नेता मानें। इन चुनावों के नतीजों ने उनकी इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। राजनैतिक रूप से कांग्रेस अब मजबूत स्थिति में आ गयी है। पार्टी के भीतर और बाहर जहां राहुल गांधी की छवि कमजोर नेता की थी और बना दी गई थी, वहीं अब उसमें जोरदार सुधार हो गया है। इन चुनावों का यदि विश्लेषण करें तो पता चलता है कि जीत से भले ही कांग्रेस उत्साहित भले ही कांग्रेस उत्साहित हो लेकिन यह भी तथ्यात्मक है कि इन राज्यों में डबल एंटीइंकमबैंसी फैक्टर ने भी कांग्रेस को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा 15 सालों से सत्ता पर काबिज थी और जनता इन राज्यों में बदलाव चाहती थी। कांग्रेस के रूप में उसको मजबूत विकल्प मिला और उसने उसे ही सत्ता की चाबी सौंप दी। राजस्थान ने पिछले 25 वर्षों की परंपरा कायम रखी और मौजूदा सरकार को बदल दिया। इसका प्रमाण यह है कि दोनों बड़े राज्यों में वोटों का प्रतिशत बहुत अधिक कम रहा। इसके अलावा इन राज्यों में लोगों की नाराजगी काफी हद तक राज्य सरकारों से थी न कि केन्द्र सरकार से। यदि केन्द्र सरकार से भी लोगों की नाराजगी होती तो मुकाबला इतना कड़ा नहीं होता और कांग्रेस भारी बहुमत से सरकार बनाती। इन चुनावों में कांग्रेस ने नोटबंदी, जीएसटी और कांग्रेस की दुर्दशा के मुद्दे उठाये जो काफी हद तक कांग्रेस के पक्ष में गये। भाजपा के लिए नोटबंदी और जीएसटी के फायदे भले ही दूर की कौड़ी हों लेकिन इन चुनावों में भाजपा सत्ता से बेदखल जरूर हो गयी। राज्यों के इन चुनावों के नतीजों को एक ओर कांग्रेस जहां अगले आम चुनाव का सेमीफाइनल मान रही है वहीं दूसरी ओर भाजपा इस सिरे से नकार रही है। भाजपा का मानना है कि इन चनावों का कोई असर आम चुनाव पर नहीं पड़ेगा। दोनों पार्टियों के मात्र पर अपने-अपने दावे हो सकते हैं लेकिन इन दावों में कितनी सच्चाई है, यह अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव में जनता ही तय करेगी।