मनरेगा से बड़ी है पीएम किसान निधि योजना



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पीएम किसान सम्मान निधि योजना को आनन-फानन में लागू किया है। किसानों को वर्ष भर में 6 हजार रूपये की नकद सहायता में पहली किस्त दो हजार रूपये की गत 24 फरवरी को उनके खाते में पहुंचा भी दी गयी है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेता इस भोजना की आलोचना करते हुए इसे ना काफी बता रहे हैं क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी गरीबों को न्यूनतम आय देने का वादा कर रखा है। राहुल ने कहा था कि पीएम किसान सम्मान निधि में किसानों को सिर्फ 17 रूपये प्रतिदिन मिलेगा। कांग्रेस अपनी मनरेगा योजना को काफी अच्छा बताती है जब कि मनरेगा में भी औसतन 50 दिन ही रोजगार मिलपाया और उसमें भी बिचैलियों ने ज्यादा फायदा उठाया था। गरीब किसानों के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार की यह योजना काफी चर्चा में है और 12 करोड़ किसानो को इसका लाभ मिलेगा। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार इसी मनरेगा के सहारे बनी थी। इसलिए माना जा रहा है कि मोदी के नेतृत्व में दूसरी सरकार पीएम किसान निधि योजना के सहारे बनेगी। पीएम किसान सम्मान निधि योजना देश में औपचारिक रूप से लागू हो गई है और लगभग एक करोड़ किसानों के खाते में दो हजार रुपये की पहली किस्त पहुंच चुकी है। इस महीने के अंत तक लगभग दस करोड़ किसानों तक यह राशि पहुंच जाएगी। संभवतः चुनाव के बीच ही खरीफ सीजन से पहले और आखिर में रबी सीजन से पहले दो किस्त और पहुंचेंगी। यानी 12 करोड़ किसानों को साल में छह हजार रुपये। देश में किसानों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह बहुत छोटी-सी राशि लग सकती है और खासकर तब जब कांग्रेस अध्यक्ष घूम-घूमकर इसका उपहास उड़ा रहे हों और बता रहे हों कि यह तो सिर्फ 17 रुपये प्रतिदिन की योजना है। उनकी मानें तो वह किसानों की एकमुश्त कर्ज माफी करना चाहते हैं।
चुनावी साल में ऐसे आरोप-प्रत्यारोप और एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर वादे लाजिमी हैं, लेकिन अगर पहली संप्रग सरकार की चुनाव जिताऊ योजना मनरेगा से इसकी तुलना की जाए तो जो आंकड़े आएंगे उससे शायद राहुल गांधी भी चैैंक जाएं। यह सवाल भी उठेगा कि क्या उनके सलाहकारों ने इस योजना की पूरी व्याख्या कर उन्हें बताई? सच्चाई यह है कि 2008-09 की मनरेगा कम से कम आंकड़ों और गरीबों को मिल रहे फायदे के बाबत 2018-19 की किसान योजना से पीछे थी। सच्चाई यह है कि 12 साल पहले लागू हुई मनरेगा आज भी दायरे में पीएम किसान योजना से छोटी है। ऐसे में कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी से यह जरूर अपेक्षा की जाएगी कि वह किसान सम्मान निधि योजना का उपहास उड़ाने से पहले तथ्यों की पूरी तहकीकात कर ले।



जिस सामान्य गणित से कांग्रेस अध्यक्ष ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना को 17 रुपये प्रतिदिन की योजना करार दिया है उसी आधार पर मनरेगा का आकलन किया जाना चाहिए। मनरेगा भले ही वर्ष 2006 में शुरू हुई थी, लेकिन पूरे देश में यह चुनावी साल 2008-09 में पहुंची थी। इसमें यह गारंटी दी गई थी कि ग्रामीण मजदूरों को साल में सौ दिन रोजगार मिलेगा और संबंधित राज्य की न्यूनतम मजदूरी को ही वहां मान्य बनाया गया था। इस आधार पर देश के अलग-अलग राज्यों में मजदूरों को 60 रुपये से लेकर 200 रुपये तक मिलना शुरू हुआ था। इतनी मजदूरी उनके लिए थी जो आठ घंटे का पूरा काम करते थे और जिनका काम कम हुआ उसकी मजदूरी कटती थी, लेकिन यह उल्लेखनीय है कि 100 दिन की गारंटी के बावजूद पूरे देश में जरूरतमंद लोगों को औसतन 50 दिन से भी कम का रोजगार मिला।
रोजगार का यह आंकड़ा मनरेगा आज तक पार नहीं कर पाया, बल्कि धीरे-धीरे यह आंकड़ा घटता जा रहा है। खैर उस आधार पर वर्ष 2008-09 में मजदूरों को सालाना औसतन लगभग चार हजार रुपये ही मिल पाए थे। यह बताने की जरूरत नहीं कि उस चार हजार रुपये को पूरे साल की रोजाना आय में बांटा जाए तो मजदूरों के हाथ जो आया वह महज 11 रुपये के आसपास था।



दूसरी तरफ पीएम किसान सम्मान निधि योजना में सीमांत और लघु किसानों को सालाना छह हजार रुपये की गारंटी है। कोई किंतु परंतु नहीं, कोई बिचैलिया नहीं। कोई भ्रष्टाचार नहीं, क्योंकि यह पैसा सीधे किसानों के खाते में पहुंच रहा है। मनरेगा पर सीएजी रिपोर्ट ने बताया था कि लंबे अरसे तक किस तरह मजदूरों के खाते में पैसे चढ़े जरूर, लेकिन गया बिचैलियों की जेब में। आज भी मनरेगा योजना चल रही है। अब इसके तहत राशि भी बढ़कर लगभग 60 हजार करोड़ रुपये हो गई है, जॉब कार्ड भी दस करोड़ के आसपास हैं, लेकिन काम कर रहे लोगों की संख्या चार-पांच करोड़ के ही आसपास है, जबकि पीएम किसान सम्मान निधि योजना के दायरे में 12 करोड़ किसान हैं। जाहिर है दायरे में पहले दिन से ही किसान योजना मनरेगा से तीन गुना बड़ी है। मनरेगा से जुदा पीएम किसान योजना में पूरे देश के किसान एक जैसे लाभान्वित होंगे। मनरेगा में यह विषमता बरकरार है। उद्योगीकरण में पिछड़े पूर्वी राज्यों के मजदूरों को मनरेगा में दक्षिण के मुकाबले आधी से कम राशि मिलती है।
मनरेगा अपने समय की अनोखी योजना थी। इसे प्रभावी बनाने के लिए तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को सरकार के अंदर तीखी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इस योजना ने बहुत कुछ बदला। जब काम न हो तो काम देना और घर के पास ही काम मिलना। यही कारण है कि लाख गड़बड़ियों और छोटे दायरे के बावजूद मनरेगा को चुनाव में गेम चेंजर माना गया। पीएम किसान योजना का राजनीतिक प्रभाव क्या होगा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन गरीबों की हालत में बदलाव की मंशा वही है। दो-दो हजार रुपये की तीन बार मदद तब जबकि बुआई का वक्त हो। इस पर बहस हो सकती है कि क्या यह राशि थोड़ी और बढ़नी चाहिए थी? लेकिन फिलहाल इससे इतनी-सी मदद जरूर हो जाएगी कि खेत में बीज पड़ जाएं। बीज बोने से पहले ही साहूकार के पास फसल गिरवी न रखनी पड़े। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बड़ी संख्या में सीमांत किसान बैंकों के कर्जदार नहीं, बल्कि साहूकारों के दबाव में हैं। लगभग 60 फीसद किसान सीमांत होते हैैं और इन्हें चुनावी साल में मिलने वाली कर्ज माफी का लाभ नहीं मिल पाता है।
चुनावी साल है तो राजनीति भी होगी। होनी भी चाहिए, लेकिन ऐसी योजनाओं में अवरोध पैदा करना घातक हो सकता है। यह बात इसलिए, क्योंकि गैर भाजपा शासित राज्यों से केंद्र को आंकड़े देने में आना-कानी हो रही है। रबी की फसल का सीजन है और किसानों को यह किस्त न मिल पाए तो नुकसान संबंधित सरकारों को भी उठाना पड़ेगा। पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज की आयुष्मान योजना में तो राज्यों को भी हिस्सा चुकाना पड़ता है और इस लिहाज से कई गैर भाजपा शासित राज्यों ने हाथ खींच लिए हैं, लेकिन पीएम किसान सम्मान योजना का पैसा तो पूरी तरह केंद्र से जाना है।
याद रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक वक्त मनरेगा को संप्रग काल का खंडहर करार दिया था, लेकिन उन्होंने इसे आगे बढ़ने से नहीं रोका। यह राजनीतिक लिहाज से भी उचित नहीं था। किसी भी सरकार के लिए जनोपयोगी कल्याणकारी योजना के आड़े आना खतरनाक है।