आखिर कैसे रुके पराली का जलना?

 


हर वर्ष अक्टूबर का महीना आते ही दिल्ली प्रदूषण से बेहाल होने लगती है। यों तो देश की राजधानी में प्रदूषण के दूसरे कारण भी हैं लेकिन पराली का धुंआ उसमें बड़ी भूमिका अदा करता है। पराली के धुंए से दिल्ली को कैसे निजात मिले, यह यक्ष प्रश्न लंबे समय से बना हुआ है। अभी तक सरकारी मशीनरी के पास पराली से निपटने की कोई ठोस परियोजना नहीं है। दिल्ली से सटे हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश इसके लिए जिम्मेदार हैं। इन प्रदेशों के किसान सरकार की तमाम अपीलों को दरकिनार करते हुए धड़ल्ले से पराली जला रहे हैं और प्रशासन मूकदर्शक बन कर तमाशा देख रहा है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में दखल देते हुए इन राज्यों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी कर पूछा था कि वे अपने राज्यों में पराली जलाने पर अंकुश लगाने में क्या कदम उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्त अदालत ने सरपंचों और ग्राम प्रधानों को भी इस मामले में जिम्मेदार मानते हुए दंडित करने की बात की थी। यह सारी कवायद हालांकि अहम है लेकिन सरकार जब तक इस मामले में बेहतर तरीके से किसानों के सामने इसका विकल्प नहीं रखेगी तब तक स्थिति में बड़े बदलाव की संभावना कम ही नजर आती है। दिल्ली में शीत ऋतु के आते ही प्रदूषण का लेवल जानलेवा हो जाता है और इससे कई तरह की बीमारियों में भी इजाफा होने लगता है। आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा, यह किसी को पता नहीं है।


दरअसल हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने का काम पिछले कुछ सालों से ज्यादा बढ़ा है। धान से निकलने वाली पराली का इस्तेमाल पहले किसान पशुओं के चारे के लिए करते थे। वे इसे हरे चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाते थे। जैसे-जैसे इन राज्यों की खुशहाली बढ़ी, इन्होंने इसका इस्तेमाल भी लगभग बंद कर दिया। अब किसान इसको जलाना ही बेहतर समझ्ाते हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि उनके इस कृत्य से दिल्ली के लोगों का जीना दूभर हो रहा है। दिल्ली में प्रदूषण के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 30 प्रतिशत पराली का धुंआ लोगों को बीमार कर रहा है। इसके लिए काफी हद तक राजनीतिक परिस्थितियाँ भी जिम्मेदार हैं। दिल्ली और दूसरे राज्यों में विभिन्न पार्टियों की सरकारें होने से समन्वय नहीं बैठ पाता और एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए राजनेता आवश्यक कदम उठाने से बचते रहते हैं। दिल्ली में सीमावर्ती राज्यों से पराली का धुंआ अक्टूबर से शुरू होकर नवंबर तक आता रहता है और फॉग बनकर लोगों का दम घोंटता है। लगभग नवंबर के अंत में जब किसान रबी की फसल की बुवाई करते हैं तब ही इसे जलाना बंद किया जाता है।


गौरतलब है कि देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पशुओं को चारे की भारी किल्लत है। इन राज्यों से पराली खरीदकर इन क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। यह तभी संभव है जब सरकार इसके लिए कदम उठाये और किसानों के सामने कारगर स्कीम पेश करे। आज के समय हर वेस्टेज चीज का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। देश में स्किल और संसाधनों की कमी नहीं है। धान की कटाई के बाद इन राज्यों के किसानों से पराली खरीदकर उसे ट्रीट किया जा सकता है और जहां चारे की किल्लत है वहां सप्लाई की जा सकती है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को रोजगार मिलेगा और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी। खेतों में पराली जलाने से दिल्ली के लोगों को तो परेशानी होती ही है बल्कि उस क्षेत्र के लोगों को भी बीमारियां होती हैं, जिसको किसान समझ नहीं पाते। इसके अतिरिक्त उन खेतों की उर्वरा शक्ति पर काफी फर्क पड़ता है। पराली का उपयोग खाद बनाने में भी किया जा सकता है। धान के खेतों से पराली बड़ी मात्रा में निकलती है। धान की इस वेस्टेज का इस्तेमाल वैज्ञानिक तरीके से खाद बनाने में काफी उपयोगी साबित हो सकता है। 


दिल्ली में पराली का धुंआ कई सालों से आ रहा है और यदि इसी तरह से प्रदूषण में इजाफा होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली से लोगों का पलायन शुरू हो जायेगा। ऐसी भयानक स्थिति के संकेत मिलने भी शुरू हो गये हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि सरकार दिल्ली में बढ़े प्रदूषण को रोकने के लिए अविलंब कदम उठाये ताकि देश की राजधानी की शान बनी रहे और प्रदूषण के कारण कोई दिल्ली को न छोड़ने की सोचे।