ब्रेन फ्रीज कर नया इंसान बनाने की उम्मीद
सवाल है कि क्या आज का इंसान सदियों बाद वैसा ही इंसान बन सकता है जैसा कि आज है। महान वैज्ञानिक, साहित्यकार, कलाकार, अभिनेता, संगीतकार, राजनीतिक आदि को सदियों बाद वैसा ही बनाया जा सकता है। शरीर के स्टेम सेल के प्रत्यारोपण से वैसे ही मानव की कल्पना की जा सकती है। तब दुनिया को रेडिमेड प्रतिभायें मिलेंगी। यदि शरीर के अन्य अंग काम करने लगे किन्तु मस्तिष्क जीवित रहे तो दिमाग को सदियों के बाद के लिए रखा जाता है। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि वे भविष्य में ऐसे इंसान को तैयार कर सकेंगे जैसा कि वे चाहते हैं। इस प्रकार, वैज्ञानिक, कलाकार, साहित्यकार, संगीतकार व अन्य क्षेत्रों की प्रतिभायें तैयार हो जायेंगी। तब समाज में विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभायें दुनियां में क्रांति पैदा करेंगी।

कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसे तब तक मृत नही घोषित किया जा सकता है जब तक कि उसका बे्रन डेड नहीं होता है। ऐसे ब्रेन को सुरक्षित रखा जा सकता है। शरीर के अन्य अंग जैसे आंखे, ह्नदय, गुर्दे, फेफडे़, आंते फ्रीजर में सुरक्षित रखे रहते हैं। ताकि उनकों किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यारोपित किया जा सके। तब इंसान को नयी जिंदगी मिलेगी। इसी उम्मीद के साथ वैज्ञानिकों का शोध कार्य चल रहा है।

हाल ही में रूस के एक वैज्ञानिक डा0 यूरी पिचुगिन की 67 वर्ष की उम्र में हार्टअटैक से मौत हो गयी थी। डा0 यूरी ने एक तकनीक का आविष्कार किया था जिसे फ्रेकेस्टाइन तकनीक कहा जाता है। इस तकनीक में दिमाग को 200 डिग्री माइनस तापक्रम पर फ्रीज कर दिया जाता है। इसे क्रायो प्रिजर्वेशन कहा जाता है। ऐसी अवधारणा है कि ऐसे फ्रीज्ड दिमाग को वर्षो या सदियों बाद फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तकनीक का प्रयोग रूस के अलावा अमरीका में भी होता है।


यह दिलचस्प बात है कि डा0 यूरी पिचुगिन का दिमाग उनकी तकनीक पर माइनस 196 डिग्री पर खास रसायन के साथ फ्रीज किया गया है ताकि उसका कभी फिर से इस्तेमाल किया जा सके। मास्को के जिस वेयर हाउस में डा0 यूरी का दिमाग प्रिजर्व रखा गया है। वहां अन्य कई लोगों के दिमाग प्रिजर्व रखे गये हैं। इस उम्मीद के साथ ताकि इनसे इंसान को दोबारा जिंदगी मिल सके।

यदि क्रायो प्रिजर्वेशन तकनीक सफल होती है तो यह भविष्य में चिकित्सा विज्ञान में क्रांतिकारी कदम होगा। बताया गया है कि क्रायो प्रिजर्वेशन का धंधा फल फूल रहा है। कंपनियां इसके लिए लाखों रूपयेे लेती है ताकि इससे इंसान को नई जिंदगी मिल सके। डीप फ्रीजर में शव सुरक्षित रहता है। लड़ाई के दौरान बर्फीली पहाड़ियों में फौजियों के शब दफन हो जाते है। ऐसे कई उदाहरण है कि जब इन शवों को बरसांे बाद वैसा ही प्राप्त कर लिया गया और उनका उनके धर्मो के अनुसार अंतिम संस्कार कर दिया गया।


उत्खनन में मानव व प्राणियों के जीवाश्म मिले है जो सदियों बाद भी सुरक्षित रहते है इनसे तत्कालीन संस्कृति, सभ्यता व इतिहास की जानकारी मिलती है।

पर्वतीय क्षेत्र में निवास करने वाले दीर्घायु होते हैं। जो लोग उच्च हिमालयी क्षेत्रांे में रहते हैं उनका शरीर स्वस्थ रहता है और वे लंबी आयु जीते हैं। वे बर्फ में रहने के अभ्यस्त होते हैं। वे परिश्रमी होते है और शरीर को उर्जित रखते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघल रहे हैं, जिसके कारण बर्फीले पहाड़ पिघलकर जल स्रोतों में बदल रहे हैं। इस कारण पहाड़ धीरे-धीरे गर्म हो रहे हैं। इस कारण पहाड़ी क्षेत्रों में भी लोग बीमार हो रहे हैं। उन्हें ऐसे कई रोग लग रहे हैं जिनका नाम उन्होंने कभी सुना भी नहीं था। अधिक ठंड में रोग के वायरस मर जाते हैं। मलेरिया या डेंगू जो ठंड में नही पनपता, पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को भी पीड़ित कर रहा है। कई लोग मानवता के हित के लिए अंगदान करते हैं। चिकित्सक इन लोगों के मृत शरीर से अंगों की संरचना व सर्जरी का प्रशिक्षण लेते हैं। इनके शरीरों को सड़ने से बचाने के लिए फ्रीजर में रखा जाता है। मानव मस्तिष्क की संरचना बेहद जटिल है। मस्तिष्क शरीर के समस्त अंगों को नियंत्रण में रखता है। महान व्यक्तियों का मस्तिष्क अधिक विकसित होता है और वे इसके माध्यम से महान कार्य करते हैं। यदि ऐसे महान पुरूषों के मस्तिष्क को क्रायो प्रिजर्वेशन के तरीके से संरक्षित रखा जायेगा तो वर्षो या सदियों के बाद प्रतिभावान मनुष्यों को तैयार करना संभव हो जायेगा। इस दिशा में वैज्ञानिकों का शोध जारी है।