राजनीति की बिसात पर मोहरों की अदलाबदली
राजनीति की बिसात पर मोहरों की अदलाबदली

 

नये साल के आगाज के साथ ही देश की राजनीति में नये सरकार के लिए भी जोर आजमाइश शुरू हो गई है। भाजपा के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार जहां अपने कार्यकाल को आजादी के बाद का सबसे अच्छा काल बता रही है वहीं प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसको सबसे खराब करार दे रही है। इस काल का सटीक आंकलन तो आने वाले समय में जनता ही करेगी लेकिन अपने-अपने दावों के बल पर सभी राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी गणित को अंतिम रूप देना शुरू दिया है। ऐसी स्थिति में सरकार के घटक दलों की बढ़ती महत्वाकांक्षा ने न सिर्फ भाजपा की नींद हराम कर दी है बल्कि दोबारा विश्वसनीयता कायम करने की चुनौती भी बढ़ा दी है। दूसरी ओर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस को अब बिखरे विपक्ष की झंडाबरदारी का दावा मजबूत होता दिखाई दे रहा है। 

बावजूद इसके 2019 के आम चुनाव के लिए दोनों ही राष्टÑीय पार्टियों की राह में रोड़े कम नहीं हैं। भाजपा से मुकाबले के लिए यों तो महागठबंधन की सुगबुगाहट पिछले करीब 2 वर्षों से चल रही है लेकिन वह ठोस आकार अब तक नहीं ले पा रहा है। फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च के प्रथम सप्ताह में आम चुनाव की घोषणा तय है, इसके इतर सभी पार्टियों में पाला बदलने का क्रम अभी चल ही रहा है। 

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकारें गंवाने का मलाल भाजपा को जरूर है लेकिन वह इससे विचलित भी नहीं है। उसका मानना है कि इन चुनावों का आम चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा और विकास के मुद्दे पर जनता दोबारा भाजपा को ही चुनेगी। दूसरी ओर आने वाले आम चुनाव में काफी हद तक दूसरे मुद्दों के साथ-साथ राम मंदिर निर्माण का मुद्दा छाने की पूरी संभावना है। इस मुद्दे को विपक्षी पार्टियां काफी जोरशोर से उठायेंगी। पिछले करीब एक वर्ष से आरएसएस के साथ-साथ हिंदूवादी संगठनों ने राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने इसके लिए अध्यादेश लाने की भी मांग है। इस मुद्दे पर भाजपा ने अपना स्टैण्ड साफ कर दिया है और कहा है कि जब तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है तब तक अध्यादेश नहीं लाया जा सकता। भाजपा ने इस मामले के सुलझने की राह में कांग्रेस को सबसे बड़ा रोड़ा भी बताया है। क्योंकि कांग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल ने ही इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट से आम चुनाव के बाद सुनवाई करने का आग्रह किया था।

दूसरी और भाजपा से मुकाबले के लिए अभी भी महागठबंधन का रास्ता साफ होता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस की अगुवाई में सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट नहीं हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का गठबंधन तो बन गया है लेकिन इस गठबंधन में वे कांग्रेस को शामिल नहंी करना चाहतीं। उनको लगता है कि जब उसका उत्तर प्रदेश में जनाधार ही नहीं है तो उसे गठबंधन में क्यों शामिल किया जाये? इसके अलावा राष्टÑीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव और राष्टÑवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार के साथ-साथ डीएमके के नेता स्टालिन ने कांग्रेस की अगुवाई में महागठबंधन में शामिल होने की हामी भर दी है। यह कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों में से उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अभी अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फिलहाल अगला लोकसभा चुनाव अकेले ही लड़ने का मन बना लिया है। इस परिप्रेक्ष्य में अगले आम चुनाव में कई पार्टियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी होगी। इनमें बहुजन समाज पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल और राष्टÑीय लोकदल जैसी पार्टियाँ शामिल हैं। 2014 के आम चुनाव में इन पार्टियों को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी। इस चुनाव में उनको अपना अस्तित्व बचाने की गंभीर चुनौती होगी। इसके अतिरिक्त आम चुनाव आरएलएसपी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों के भविष्य का फैसला भी करेगा।

 

- देवेन्द्र सिंह राजपूत

Popular posts