आतंकियों के दुस्साहस का निर्णायक दमन


एक बार फिर कश्मीर की धरती भारत के वीर जवानों के रक्त से लाल हो गयी। जम्मू-कश्मीर हाईवे पर गोरीपोरा में एक आतंकी ने 320 किलो विस्फोटक से भरी कार सीआरपीएफ के काफिले की बस से टकरा दी। उस बस के परखच्चे उड़ गये। सीआरपीएफ के काफिले में 60 वाहन थे। आतंकी की विस्फोटक भरी कार जिस बस में टकरायी, उसमें सवार जवानों में 44 ने 14 फरवरी तक दमतोड़ दिया था। कई घायल हुए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत ही आक्रोश और दुख भरे शब्दों में कहा जवानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। आतंकियों ने बहुत बड़ी गलती कर दी है, सजा भुगतेंगे......। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने पाकिस्तान की भी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़चुका हमारा पड़ोसी देश अगर ये समझता है कि इन साजिशों से वो हमारे देश में अस्थिरता पैदा करने में कामयाब हो जाएगा, तो यह कभी संभव नही होगा। पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए श्री मोदी ने कहा कि आतंक के सरपरस्तों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। श्री मोदी का भी आशय यही है कि शायद हम आतंकियों में दुस्साहस का निर्णायक दमन नहीं कर सके। आतंकियों ने उड़ी में सेना के कैम्प पर जो हमला किया था, उसके जवाब में हमने पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक कर के आतंकवादियों के प्रशिक्षण केन्द्रों को नष्ट किया और कई आतंकियों को भी मार गिराया था। इसके बावजूद आतंकियों के अंदर हम दहशत पैदा नहीं कर पाये, जिससे उनका दुस्साहस फिर से सामने आया है। इसी के साथ हम अपने देश के अंदर छिपे गद्दारों के खिलाफ समुचित कार्रवाई नहीं कर पाये जिसका नतीजा आदिल अहमद उर्फ बकास है जो विस्फोटकों से भरी कार लेकर आत्मधाती आतंकवादी बना। चूक और भी कई जगह से हुई हैं जिनपर गंभीरता से सोचना होगा ताकि आतंकियों को फिर इस तरह का दुस्साहस न हो सके। अब हमें उनका दमन निर्णायक स्तर पर करना होगा।


आतंकवाद और अलगाव वाद की आग में सुलग रहे जम्मू-कश्मीर में जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंती पोर के पास गोरी पोरा में जब पूरी दुनिया सेंट वैलेन्टाइन के प्रेम के संदेश को याद कर रही थी तभी हमारे एक पड़ोसी देश के पोषित आतंकवादी ऐसा दुस्साहस कर बैठे हैं जिसकी सजा उन्हें निश्चित तौर पर मिलनी चाहिए। इसके साथ ही कश्मीर में छिपे आतंकियों को तलाशना भी जरूरी है। सीआरपीएफ के जवानों की इस यात्रा की जानकारी आतंकियों के पास थी और बिगड़े मौसम ने उन्हें तैयारी करने का अवसर भी दे दिया था। सीआरपीएफ के जवान अवकाश बिताकर अपनी ड्यूटी पर आ रहे थे। भूस्खलन और बर्फबारी के कारण जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग बंद होने से करीब एक हफ्ते से जम्मू के छन्नीरामा स्थित ट्रांजिट कैम्प में फंसे हुए थे। हादसे वाले दिन अर्थात 14 फरवरी को सुबह जम्मू से श्रीनगर जाने वाले राजमार्ग को एक तरफ खोला गया। जम्मू में फंसे जवानों में 60 से अधिक वाहन निकाले गये क्योंकि मौसम के फिर से बिगड़ने के आसार थे। सीआरपीएफ की कोशिश थी कि जवानों को शीध्र से शीध्र सुरक्षित श्रीनगर पहुंचा दिया जाए। हमला उस समय हुआ जब जवानों का काफिला श्रीनगर से सिर्फ 30 किमी. दूर था। उसी समय एक कार तेजी से जवानों के काफिले में घुसी और आत्मघाती कार चालक ने सीआरपीएफ की बस में टक्कर मार दी। कार में विस्फोटक भरे थे।



कार चलाने वाला आदिल अहमद उर्फ वकास पुलवामा के गुंडीपोरा का ही रहने वाला है। पुलवामा में गुंडीबाग, काकपोरा में आतंकी किस तरह छिपे हैं, यह आपरेशन आलआउट से भी पता नहीं चल पाया। उस समय कहा जाता था कि महबूबा मुफ्ती के असहयोग के चलते सेना को खुलकर काम करने का अवसर नहीं मिलता लेकिन अब तो तीन महीने से वहां राष्ट्रपति शासन है और एक तरह से केन्द्र सरकार का ही कश्मीर पर नियंत्रण है। आदिल अप्रैल 18 में ही आतंकी संगठन में सक्रिय हुआ था और जैश-ए-मोहम्मद के अफजल गुरू स्क्वायड में शामिल हो गया। सुरक्षा बलों ने 21 वर्षाीय इस आतंकी को सी श्रेणी में सूचीबद्ध किया था और उसके ऊपर तीन लाख का इनाम घोषित कर रखा था। सीआरपीएफ जवानों की बस में कार से ठोकर मारने वाला आदिल अहमद मारा गया अथवा नहीं इस बारे में भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कयोंकि कार में विस्फोट रिमोट के जरिए हुआ है। पुलवामा में हुआ यह हमला 2016 में उड़ी में सेना के कैम्प पर हुए हमले के बाद सबसे बड़ा है। उड़ी में आतंकी हमले के बाद सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी और अर्से तक आतंकी अपने बिल से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा सके थे।


इस आतंकी हमले की दुनियाभर के देशों ने निंदा की है और रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने हमले के प्रायोजक को भी सजा देने को कहा है। इस दिशा में चीन को भी सोचना चाहिए जिसने जैश-ए-मोहम्मद के मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने पर अपने बीटो का दुरूपयोग किया है। जैश-ए-मोहम्मद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की इमरानखान सरकार भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। देखा तो यही जा रहा है कि जब से इमरान खान प्रधानमंत्री बने हैं, तबसे आतंकी वारदातें बढ़ गयी हैं। जैश-ए-मोहम्मद का ही प्रतिबोधित एनजीओ अल रहमत ट्रस्ट फिर से सक्रिय हो गया है। इसी महीने की पांच तारीख को कश्मीर दिवस मनाने के नाम पर लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन के साथ मिलकर जैश ए-मोहम्मद ने भी चंदा वसूला। इसलिए दुनिया भर के देश आतंकी हमले की सिर्फ निंदा करने तक ही सीमित न रहें बल्कि आतंकियों को पाल रहे पाकिस्तान पर भी दबाव बनाएं। इस मामले में चीन विशेष रूप से कार्य कर सकता है।



इसी के साथ दूसरी बात अपने देश के कर्णघारों से भी करनी होगी। यह सच है कि राजनीति करने का यह समय नहीं है लेकिन एक अदना सा मंत्री गुजरता है तो उसके लिए पूरी रोड़ खाली करा दी जाती है। सीआरपीएफ के जवान श्रीनगर के उस संवेदन शील स्थल से गुजर रहे थे, जहां अक्सर हमले होते रहते हैं तो उनके लिए सड़क पर निर्बाध ट्रैफिक की कोई व्यवस्था क्यों नहीं की गयी? सीआरपीएफ के काफिले के बीच में आतंकी की विस्फोटक से भरी कार कैसे पहुंची? उस कार की जांच - पड़ताल नेशनल हाईवे पर क्यों नहीं की गयी और अफजल गुरू एक्वायड को राज्यपाल शासन के दौरान भी क्यों नहीं निष्क्रिय किया जा सका। अफजल गुरू स्कवायड का गठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद ने जनवरी 2014 में किया था। उसने यह संगठन भारत की संसद पर हमले के साजिश कर्ता अफजल गुरू की 9 फरवरी 2013 को हुई फांसी का बदला लेने के लिए बनाया था। इसी दस्ते ने उत्तरी कश्मीर के उड़ी, मोहरा के अलावा श्रीनगर एयरपोर्ट के पास बीएसएफ शिविर पर भी हमला किया था। फिलहाल पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों के काफिले पर आतंकी हमले की जांच राष्ट्रीय जांच समिति (एनआईए) करेगी लेकिन कुछ सवाल आमजनता के मन में उठ रहे हैं, उनका समाधान तो सरकार को करना ही चाहिए। सेना को सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी पता था कि अभी कश्मीर और पीओके में आतंकी हैं अब कहा जा रहा है कि सेना को बदला लेने की पूरी छूट दी गयी है, पहले यह छूट क्यों नहीं दी गयी? आतंकवादी मौजूद हैं तो उनके खिलाफ वैसी ही कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? आतंकियों का दुस्साहस इसीलिए बना हुआ है।