चुनाव प्रधान देश है भारत


भारत एक ऐसा विचित्र देश है जहां हर समय कहीं न कहीं, किसी न किसी अथारिटी के चुनाव चलते रहते हैं। विधानसभा के हुए तो लोकसभा के हाजिर। यह निपटे तो राज्यसभा सामने है। इससे निपटे तो पंचायत आदि में जुटो। इनसे निजात पाई तो विधान परिषद, नगर परिषद आदि के लिए न्यौता तैयार।


एक समय कहा जाता था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, अब यह चुनाव प्रधान देश है। इस चुनाव प्रधान देश में अक्सर वोटर चुनाव के प्रति निरपेक्ष अथवा कहें कि लापरवाह हो जाता है। वास्तव में यह लोकतंत्र के लिए भयावह तस्वीर है। ऐसा होना नहीं चाहिए। चुनाव से ऊब कैसी-कैसी समस्याएं उत्पन्न कर सकती है, यह कोई नासमझ भी समझ सकता है।


इसीलिए हमारी सरकारें इस मसले में इतनी सतर्क हैं कि मतदाता को जागरूक करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देतीं। मसलन, राजस्थान विधानसभा के हालिया चुनाव के बाद यहां भाजपा सत्ताच्युत और कांग्रेस सत्तारूढ़ हो गई। जाहिर है कि केंद्र के स्वच्छता अभियान के प्रति गंभीरता कम होनी थी। स्वच्छता भले कांग्रेस के पोस्टर मैन महात्मा गांधी का मूल सिद्धांत है लेकिन अभी यह भाजपाई पीएम नरेंद्र मोदी के आह्वान पर चल रहा है तो नई सरकार के गठन से पूर्व ही ठेकेदार कंपनी सहम गई। उसने इस अभियान के प्रति कैसी लापरवाही बरतनी शुरू की, इसकी गवाही जयपुर की हर सड़क स्वयं देती है। उस समय प्रतिदिन आने वाले कचरा संग्रहण वाहन अब दो-तीन दिन के अंतराल पर आने लगे हैं। सड़कों से कचरा उठना लगभग बंद हो गया है लेकिन मतदाता को जागरूक करना नहीं छोड़ा।


राजस्थान विधानसभा के लिए मतदान हुए लगभग दो माह बीत चुके हैं। परिणाम आ चुका है। नई सरकार पूरी सज-धज कर जनपथ पर जनता के बीच शपथ ग्रहण कर चुकी है। उसके बाद लंबित उपचुनाव तक का रिजल्ट आ गया, लेकिन कचरा संग्रहण को आने वाली गाड़ियां अब भी गीत बजा रही हैं - चलो मतदान करें। और इसमें मतदान की तिथि राजस्थान विधानसभा के गुजर गए चुनाव की है।



लेकिन इससे भी बड़ी दो बातें और हैं। भारतीय मतदाता के विषय में अनेकानेक शोध हुए हैं। कई में बड़ी वस्र्ट रिपोर्ट है तो कई में भारतीय मतदाता देवगण जैसे दर्शाए गए हैं। मैं तो क्या कहूं, लेकिन दो परिणाम आपके सामने हकीकत खोल देंगे - हरियाणा के जींद में कांग्रेस के रणदीप कहावतवाला तीसरे नंबर पर रहे। उनको यह स्थान मिलना लोकसभा चुनाव से पूर्व की बहुत बड़ी और बेहद महत्त्वपूर्ण घटना है, इसलिए कि वे पहले से विधायक थे। वे टीवी पर कांग्रेस का चमकता चेहरा हैं। अपनी लच्छेदार भाषा के कारण ज्यादातर लोगों के मुंह से मैंने उनका सरनेम सुरजेवाला के बजाय कहावतवाला सुना है। हरियाणा के वोटर ने दामादजी को सजा नहीं मिलने के बावजूद यह किया तो निश्चय ही यह बहुत महत्त्वपूर्ण है।


दूसरा मामला है राजस्थान के अलवर के रामगढ़ से कांग्रेस की सफिया खान की जीत। बीएसपी उम्मीदवार के निधन के कारण इस सीट पर चुनाव स्थगित हो गया था, इसलिए उपचुनाव हुआ। पिछले चुनाव प्रचार के दौरान सफिया खान का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे कह रही थीं - कुछ भी हो जाए, कुछ भी करो, किसी की खोपड़ी ही क्यों न फोड़नी पड़े, यह चुनाव जीतना है।
और वे चुनाव जीत गईं। क्या वोटर डरपोक है? क्या उसे ‘कुछ भी’ से खरीदा गया? जैसे बहुत से सवाल फजाओं में उचकते हैं, लेकिन पूछे कौन?
जो महा विद्वान राजनीति के अपराधीकरण पर आए दिन सुदीर्घ व्याख्यान देते दिखते रहे हैं, वे अब खामोश चुप हैं।  यह खेमा अपने स्वार्थ के लिए ही सत्ता विरोधी होता है और इसी के लिए उसके चरणों में दंडवत करता है। इसे सुधारने वाला अवतार अब तक नहीं हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में किसानों का जीवन नरक बना दिया। यह देश ‘कृषि प्रधान’ है, यह लिखते हुए मुझे याद आया कि इस कृषि प्रधान देश का सत्यानाश किसने किया।