ममता की धरना-राजनीति


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने तीन फरवरी को जिस तैयारी के साथ धरना शुरू किया था, उसे 5 फरवरी को मजबूरन खत्म करना पड़ा। ममता बनर्जी के इस धरने की तुलना सिंगुर धरने से की जाने लगी थी जब टाटा की नैनो कार के संयंत्र की खातिर वाम मोर्चा सरकार ने किसानों की जमीन अधिग्रहीत की थी और किसान उसका विरोध कर रहे थे। किसानों के इस आंदोलन को कई राजनीतिक दलों ने समर्थन दिया था लेकिन उस आंदोलन की नायिका बन गयी थीं सुश्री ममता बनर्जी और इसके बाद ही दीदी का पश्चिम बंगाल मंे विजय अभियान शुरू हुआ था। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने पहले स्थानीय निकाय के चुनावों मंे माकपा और भाकपा को पीछे किया, फिर 24 साल पुरानी सत्ता को भी छीन लिया था। इस बार 3 फरवरी  को कोलकाता के पुलिस कमिश्नर के घर पर सीबीआई के छापा डालने के विरोध मंे ममता बनर्जी ने जब धरना शुरू किया तो उन्हें लगा था कि यह भी सिंगुर का इतिहास दोहराएगा। हालांकि इस बार उद्देश्य सत्ता को पलटना नहीं था बल्कि अपनी सत्ता को बचाना है क्योंकि भाजपा ने जिस तरह से अपना प्रभाव पश्चिम बंगाल मंे बढ़ाया है, उससे 2019 मंे संसद के चुनाव मंे ममता बनर्जी 2014 का इतिहास संभवतः नहीं दोहरा पाएंगी। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने तब 42 सांसदों मंे से 34 को अपने पाले मंे करने मंे सफलता पायी थी। सवाल यह है कि ममता बनर्जी ने जिस तरह की धरना की राजनीति की है, उससे उनका पक्ष मजबूत हुआ है अथवा नहीं हुआ है। उन्हांेने पहले कहा कि 8 फरवरी तक उनका धरना जोर-शोर से चलेगा और 8 फरवरी के बाद बिना माईक के धरना जारी रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह का फैसला सुनाया, उससे ममता बनर्जी और केन्द्र सरकार दोनों ने अपनी-अपनी नैतिक जीत बतायी। इसी के बाद ममता बनर्जी ने अपना धरना भी खत्म कर दिया। इस प्रकार पश्चिम बंगाल का सियासी ड्रामा खत्म हो गया है।



ममता बनर्जी का धरना समाप्त होते ही राजनीतिक गलियारों मंे यह चर्चा भी होने लगी है कि इस धरने की जरूरत क्या थी? मुख्यमंत्री को क्या इस प्रकार छोटी-छोटी बातों को लेकर धरना-प्रदर्शन करना चाहिए? दिल्ली पुलिस को लेकर वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जब धरना दिया था, तब भी यही कहा जा रहा था। ममता बनर्जी के धरना देने के बाद सुप्रीम कोर्ट मंे उनकी सरकार नहीं गयी थी बल्कि सीबीआई गयी थी जिसके विरोध मंे ममता बनर्जी धरना दे रही थीं और उनकी पूरी कैबिनेट वहां पर मौजूद थी। कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार भी धरना स्थल पर मौजूद थे, यह बात दूसरी है कि वे अपनी मौजूदगी को दूसरे अफसरों कीे तरह ड्यूटी बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अभी इन सभी की गर्दन फंसा रखी है और  20 फरवरी को फिर से सुनवाई होगी जिसमंे राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को तलब किया गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के धरने को कई विपक्षी दल के सदस्यों का समर्थन मिला लेकिन धरना स्थल पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और पश्चिम बंगाल मंे समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता किरणमय नंदा पहुंचे थे। अन्य राजनीतिक दलों ने अपना मौखिक समर्थन दिया था। पश्चिम बंगाल मंे वोट की दृष्टि से वामपंथी दल और कांग्रेस महत्वपूर्ण हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फोन करके ममता बनर्जी को समर्थन दिया लेकिन वामपंथी नेता वहां नहीं पहंुचे।  कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई भी ममता बनर्जी के इस धरना की खिलाफत कर रही थी और उसके प्रदेश नेता ने मांग कर रखी है कि वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। ममता दीदी को जो नेता समर्थन दे रहे थे, उनके वोट वहां नाम मात्र को है। इसलिए ममता बनर्जी की यह रणनीति भाजपा की आंधी को कैसे रोक पाएगी?



ममता बनर्जी ने इससे पहले कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर विपक्षी दलों की बड़ी रैली की थी। उस रैली मंे लगभग 20 भाजपा विरोधी दलों के नेता शामिल हुए थे लेकिन वे सभी पश्चिम बंगाल मंे दीदी की कोई मदद नहीं कर पाएंगे। ममता बनर्जी की इस रैली के बाद भाजपा ने तेजी से अपनी रणनीति बदली और पश्चिम बंगाल सरकार ने भाजपा नेताओं की रैलियों मंे जिस तरह से बाधा डाली, उससे भाजपा के पक्ष में ही ध्रुवीकरण हुआ है। पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हेलिकाप्टर को उतरने से रोका गया और बाद मंे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रैली करने मंे भी बाधा डाली गयी तो जनता भी सवाल कर रही है कि कानून-व्यवस्था की ऐसी कौन सी स्थिति पैदा हो गयी। ममता बनर्जी के धरना देने से केन्द्र और राज्य के बीच टकराव की स्थिति भी पैदा हो गयी है। केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी से रिपोर्ट मांगी थी। राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट मंे कहाकि कोलकाता पुलिस का रवैया आपत्तिजनक था। पुलिस ने सीबीआई अधिकारियों, जिनमंे महिलाएं भी शामिल थीं, उनसे दुव्र्यवहार किया है। पुलिस ने सीबीआई को गैर कानूनी तरीके से हिरासत में लिया।



सीबीआई की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को सीबीआई के समक्ष पेश होने का आदेश  दिया और उनको गिरफ्तार न करने की राहत दी, उसे ममता बनर्जी अपनी नैतिक जीत बता रही हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने जिस तरह की टिप्पणी की है, उसे भी ममता बनर्जी के सम्मान मंे नहीं देखा जा सकता। मुख्य न्यायाधीश ने कहा था राजीव कुमार को पूछतांछ मंे क्या प्राब्लम है? आखिर कश्मिनर सीबीआई के सामने पेश क्यों नहीं हो रहे हैं? बेस्ट बंगाल सरकार को हमारे जांच के आदेश पर किस तरह की प्राब्लम है? ध्यान रहे कि शारदा चिटफण्ड घोटाले की सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही हो रही है। इसलिए 20 फरवरी को दीदी के लिए चिंताजनक समाचार भी मिल सकता है। भाजपा ने वहां माहौल को ममता के खिलाफ बनाने की पुख्ता तैयारी कर रखी है। योगी आदित्यनाथ के हेलिकाप्टर को पश्चिम बंगाल मंे इस इजाजत नहीं मिली थी इसके बाद वह झारखण्ड हेलिकाप्टर से गये और वहां  से सड़क के रास्ते पुरुलिया जाकर रैली को संबोधित किया। योगी ने कहा कि जिस दिन बंगाल मंे भारतीय जनता पार्टी की सरकार होगी, उस दिन के बाद टीएमसी के गुंडे गले मंे पट्टा लगाकर चलेंगे, वैसे ही जैसे यूपी मंे सपा और बसपा के गुंडे पट्टा लटकाकर चलते हैं और कहते हैं कि हमंे बख्श दो, हम किसी के साथ अन्याय नहीं करेंगे।



भाजपा 2019 की चुनावी लड़ाई मंे पश्चिम बंगाल को सबसे महत्वपूर्ण मान रही है क्योंकि उत्तर और मध्य भारत मंे भाजपा को जिस प्रकार के राजनीतिक नुकसान की आशंका जतायी जा रही है, उसकी पूर्ति पूर्वी और दक्षिणी भारत से ही की जानी है। पश्चिम बंगाल मंे ममता बनर्जी को घेरना भाजपा के लिए काफी आसान भी है क्योंकि अब तक वहां तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला कांग्रेस और वामपंथी दलों से ही होता रहा है। ममता बनर्जी यदि यह समझती हैं कि भाजपा नेताओं की रैलियों मंे बाधा डालकर, केन्द्र सरकार के खिलाफ धरना देकर और कई विपक्षी दलों के एकजुट करके भाजपा को निष्प्रभावी किया जा सकता है तो यह उनकी भूल है। इस तरह के कार्यकलापों से ममता बनर्जी विपक्षी गठबंधन की नेता बनने मंे सफलता प्राप्त कर सकती हैं लेकिन सांसदों के संख्याबल मंे वे कांग्रेस के सामने ठहर नहीं पाएंगी। राज्य में भाजपा का मुकाबला करने के लिए उन्हंे कांग्रेस की  सहायता लेनी पड़ेगी और कांगे्रस ने जिस तरह से बिहार मंे जता दिया कि वह बैकफुट पर नहीं, फ्रंटफुट पर खेलेगी तो पश्चिम बंगाल मंे ममत बनर्जी को कांग्रेस के प्रति अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी। सबसे बड़ी बात तो यह कि ममता अपने को पीएम पद का प्रत्याशी बताती हैं तो मुख्यमंत्री के रूप मंे उनका यह व्यवहार उस पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है।