पूर्वोत्तर पर मोदी की विशेष नजर


हमारे देश का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर जिस तरह संवेदनशील राज्य है और पड़ोसी देश पाकिस्तान की हरकतों से वहां आतंकवाद और अलगाववाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, उसी तरह पूर्वी भारत के राज्य भी संवेदनशील हैं। यहां आतंकवाद तो नहीं हैं लेकिन उग्रवाद चरम पर है। इन राज्यों में भी पड़ोसी देश चीन की कुदृष्टि लगी रहती है। पूर्वी पाकिस्तान जब से बांग्लादेश बना तब से वहां के कितने ही लोग पूर्वोत्तर भारत में ही आकर बस गये हैं। म्यांमार से रोहिग्या मुसलमानों का पलायन भी भारत और बांग्लादेश के लिए मुसीबत बना। यहां के राज्यों के मूल निवासियों को भड़काकर चरमपंथी संगठनों ने हिंसा का माहौल बना रखा है। असम में तो विदेशी लोगों की घुसपैठ ने वहां के समीकरण ही बिगाड़ दिये थे और लगभग दो दशक से वहां नागरिकता रजिस्टर बनाने की बात चल रही थी। अब उस पर काम शुुरू हुआ तो कई संगठन उसका विरोध कर रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत के राज्यों की भौगोलिक स्थिति के चलते वहां उतना विकास भी नहीं हो पाया है। गरीबी और पिछड़ेपन का लाभ उठाकर ईसाई मिशनरियों ने इन्हीं राज्यों में बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन कराने में सफलता प्राप्त कर ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा शुरू से ही इन राज्यों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास कर रहे थे। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जब पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार बनी, तभी से पूर्वोत्तर राज्यों की दशा और दिशा बदलने का प्रयास हो रहा है। भाजपा ने पूर्वोत्तर भारत में अपनी राजनीतिक पहुंच भी मजबूत की है। कांग्रेस के पास अब एक भी पूर्वोत्तर भारत का राज्य नहीं बचा है। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी भाजपा के लिए पूर्वोत्तर के राज्य काफी महत्व रखते हैं।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बसंत पंचमी से पहले इस मुहिम पर निकले तो उम्मीद की जा रही है कि वे अपने मकसद में सफल भी होंगे। पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में कुल मिलाकर लोकसभा की 25 सीटें हैं। इन लोकसभा सीटों पर भाजपा की नजर है क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों से कांग्रेस को खदेड़कर भाजपा ने स्थानीय दलों से बेहतर तालमेल बना रखा है। पूर्वोत्तर भारत में त्रिपुरा वामपंथियों का गढ़ था और बाकी सभी राज्यों में कांग्रेस का वर्चस्व रहता था। भाजपा ने त्रिपुरा पर भी कब्जा कर लिया। भाजपा ने पूर्वोत्तर में आक्रामक दंग से अभियान चलाया है और मौजूदा समय में यहां के सभी राज्यों में भाजपा या भाजपा के समर्थन से चलने वाली सरकारें हैं। इससे पूर्वोत्तर में भगवा रंग ही दिख रहा है लेकिन परिवर्तन का नियम भी शाश्वत माना जाता है। पूर्वोत्तर में भाजपा को मिली अभूतपूर्व सफलता को भी परिवर्तन की नियति ने प्रभावित किया है। अभी हाल में नागरिकता संशोधन विधेयक ने वहां हड़कम्प मचा दिया है। भाजपा ने राजग की तर्ज पर पूर्वोत्तर भारत में भी नार्थईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (एनईडीए) बना रखा था। इसके घटक दल केन्द्र सरकार के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक - 2016 के विरोध में भाजपा की असम से महत्वपूर्ण सहयोगी पार्टी असम गण परिषद पहले ही सरकार से समर्थन वापस ले चुकी है। इसी साल के पहले महीने में इसी विधेयक के विरोध में बैठक हुई थी। इस बैठक में मेघालय के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अध्यक्ष कोनराड संगमा और मिजोरम के मुख्यमंत्री  और मिजो नेशनल फ्रंट (एम एन एफ) के नेता जोरमथेगा ने हिस्सा लिया था। इनके अलावा इस बैठक में जद(यू) के केसी त्यागी समेत नगालैण्ड की नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी)  त्रिपुरा की इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) सिक्किम की सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के अलावा अरूणाचल प्रदेश नगालैण्ड और मणिपुर में एनपीपी के नेता शामिल हुए थे। नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ ताई अहोम ग्रुप ने असम बंद का ऐलान भी किया। कृषक मुक्ति संग्राम समिति समेत कुल 70 संगठनों ने जनवरी 2019 को विधेयक के विरोध में काला दिवस मनाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वोत्तर के दौरे से इस विरोध को कम करने का प्रयास किया है।



यहां पर संक्षेप में नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के बारे में भी जान लें। इस विधेयक के माध्यम से सरकार नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन कर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिन्दू सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के अवैध घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता देना चाहती है। हालांकि इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्ला देश में उत्पीड़न का शिकार मुस्लिम अल्प संख्य कों (शिया और अहमदिया) को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है। इसके अलावा इस विधेयक में 11 साल तक लगातार भारत में रहने की शर्त को कम करते हुए 6 साल करने का भी प्रावधान है। नागरिकता अधिनियम 1955 के मुताबिक वैध पास पोर्ट के बिना या फर्जी दस्तावेज के जरिए भारत में आने वाले अवैध घुस पैठिये कहे जाते हैं।



नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि भाजपा हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध को विशेष रूप से इस देश का नागरिक बनाना चाहती है। हालांकि इसके साथ अन्य अल्प संख्यको को भी नागरिकता देनी पड़ रही है लेकिन विशेष रूप से सभी गैर मुस्लिम हैं। पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय दल इस विधेयक का इसीलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि वे इसे अपनी सांस्कृतिक सामाजिक और भाषाई पहचान के साथ खिलवाड़ समझते हैं। इसी पहचान की खातिर वहां के क्षेत्रीय दल निरंतर संघर्ष करते रहे हैं। भाजपा का हिन्दुत्व इस विधेयक में निहित है पूर्वोत्तर में राजनीतिक दल समझ गये हैं कि यह संशोधन गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने के उद्देश्य से लाया गया है। धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करने का विरोध किया जा रहा है। भाजपा के वोट बैंक पर इस विरोध का असर न पड़े, इसी लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्वोत्तर के दौरे पर निकले। भाजपा के लिए पूर्वोत्तर  की भारत की 25 लोकसभा सीटें महत्वपूर्ण हैं लेकिन इसके साथ ही वहां के हिन्दुओं को नागरिकता दिलाना भी जरूरी है। श्रीमोदी 8 फरवरी को असम पहुंचे थे और 9 को अरूणाचल प्रदेश गये। ईटानगर में ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट की आधारशिला रखी। इसके साथ ही श्री मोदी ने तवांगघाटी तक बेहतर तालमेल बनाने के लिए सेला टनल की आधारशिला भी रखी है जिसका लाभ आमजनता के साथ सेना भी उठा सकेगी। उन्होंने दूरदर्शन चैनल डीडी अरूण प्रभा लांच किया। आयुष्मान भारत के तहत 50 हेल्थ और बेलनेस सेन्टरों का लोकार्पण किया। प्रधानमंत्री विकास की योजनाओ से लोगों का गुस्सा ठण्डा करना चाहते हैं। इसी के तहत श्री मोदी ने नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड की बायो डीजल रिफाइनरी और बरौनी-गुवाहाटी पाइप लाइन का शुभारंभ किया। अरूणाचल के बाद श्री मोदी त्रिपुरा पहुंचे, जिसे भाजपा ने वामपंथियों से छीना है। अगर तला एयरपोर्ट पर त्रिपुरा के महाराजा वीरविक्रम माणिक्य किशोर की प्रतिभा का अनावरण भी किया है। जुलाई 2018 में ही मोदी की सरकार ने अगरतला एयरपोर्ट का नाम बदल कर वीर विक्रम माणिक्य किशोर एयरपोर्ट रखा था। वीरविक्रम त्रिपुरा के अंतिम महाराजा थें उन्होंने 1942 में इस एयरपोर्ट का निर्माण कराया था। त्रिपुरा का यह एयरपोर्ट सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।



इस प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पूर्वोत्तर भारत का दौरा बहुआयामी था। पूर्वोत्तर के सम्मान को बढ़ाने का उन्होंने ध्यान रखा। अरूणाचल के ईटानगर पहुंचने पर उन्होंने कहा अरूणाचल प्रदेश, देश का अभिमान है। यह भारत के विकास और भारत की सुरक्षा का गेटवे भी है। श्री मोदी ने अरूणाचल को 44 हजार करोड़ का फण्ड भी दिया है। इसी प्रकार पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों में मोदी ने जनता को आश्वासन दिया कि उनकी सांस्कृतिक, भाषाई पहचान को बरकरार रखा जाएगा। साथ ही विकास के लिए धन की कमी नहीं आने दी जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार में उत्तर-पूर्व के विकास की इच्छा शक्ति भी है। जनता पर इसका कितना प्रभाव पडा है, यह शीघ्र ही पता चल जाएगा।