पुलवामा का प्रतिशोध


पुलवामा का हमला बेशक भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर किया गया एक जबर्दस्त प्रहार है और एक प्रकार से आतंकवाद की यह खुली चुनौती है कि तुम से हो सके तो हमें नष्ट कर दो अन्यथा हमारा दहशतगर्दी का संजाल इसी तरह आपके मासूम नागरिकों एवं बहादुर सैनिकों अर्ध सैनिकों को एवं सिपाहियों की जान लेता रहेगा।



 इसमें भी कोई दो राय नहीं हंै कि इस प्रकार के आतंकवाद को सीमा पार से लगातार प्रश्रय, समर्थन और सहायता मिलती रही है और वहां की सरकारें जो उस देश की सेना के आगे एक कठपुतली से अधिक मायने नहीं रखती है, वे कभी प्रतिशोधी, कभी बेबस और कभी मूर्खमति सरकारें सिद्ध हुई हैं।  अब तो वहां पर पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और अनुभवहीन राजनीतिज्ञ इमरान खान की कमजोर सरकार है पर वे तब भी कोई सही निर्णय नहीं ले पाईं जब वें मजबूत थीं।



तब भी अति महत्त्वाकांक्षी  पाकिस्तानी सेना ने सरकार की नहीं सुनी जब वहां पर शरीफ नवाज या उनसे पहले परवेज मुशर्रफ जैसे ताकतवर नेताओं की सरकार हुआ करती थी।  इससे पूर्व जनरल जिया उल हक की सरकार के समय में भी तानाशाही पूर्ण तरीके से जिया उल हक और सेना ने मिलकर भारत को लगातार चुनौतियां दी थीं। वैसे तो पाकिस्तान अपने जन्म के समय से ही भारत विरोध से ही संजीवनी पाता रहा है। चाहे वह उसके बाबा ए आजम  कहे जाने वाले जिन्ना हों या उसके बाद याहिया खान से लेकर जुल्फिकार अली भुट्टो तक कोई भी दूसरे नेता रहे हों, उन सब का राजनीतिक अस्तित्व और वर्चस्व केवल और केवल भारत के विरोध से ही बना बचा रहा है। वहां के नेताओं की घटिया सोच और भारत के प्रति प्रतिशोध की भावना हमेशा से ही हमारे लिए मुसीबतें खड़ी  करती रही है।
वहां के नेताओं और उस देश की यह दुर्भाग्यपूर्ण नियति रही है कि वे न तो अपनी सोच विकसित कर पाए और न ही अपना देश । बंदरबांट , भ्रष्टाचार और कट्टरता के घोड़े पर सवार होकर वे भीख का कटोरा हाथ में लेकर कभी अमेरिका तो कभी चीन के सामने गिड़गिड़ाना तो स्वीकार करते हैं मगर अपने पड़ोसी भारत को वक्त- बेवक्त आईना दिखाने से बाज नहीं आते और उनकी बड़ी मंशा रहती है कि किसी भी प्रकार से किसी भी तरह का नुकसान जितना भी ज्यादा से ज्यादा हो सके भारत को पहुंचाया जाए। इसके पीछे उस देश की हीन भावना और शत्राुता का भाव सबसे ज्यादा काम करता है।



दरअसल आजादी के बाद से ही जिस प्रकार का विभाजन भारत और पाकिस्तान का हुआ, उससे एक दूसरे के प्रति वैमनस्य स्वाभाविक था और तथाकथित इस्लामीकरण के नाम पर सीमा के पार जिस प्रकार से एक कट्टरता वहां पर जड़ जमाई, उससे यह भी तय था कि उस पोंगापंथीवादी विकास नीति से विकास नहीं, केवल विनाश ही होना है और पाकिस्तान में ऐसा ही हुआ। अपने ही लोगों के ऊपर लगातार बढ़ते अत्याचारों और दमन ने वहां के एक बड़े भू- भाग के बाशिंदों को सत्ता पर काबिज लोगों के प्रति इतना अधिक विरक्त कर दिया कि पूर्वी बंगाल के लोग तो बांग्लादेश के रूप में  वहां से अलग ही हो गए, साथ ही साथ बलूचिस्तानी भी लगातार पाकिस्तानी शासकों के अत्याचारों से त्रास्त होकर वहां की सरकारों के खिलाफ लगातार आंदोलनरत रहे हैं मगर वहां के शासकों को ये बातें या तो नजर नहीं आई या उन्होंने देखी ही नहीं या फिर जान-बूझकर अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसे हालात बनाए रखते रहे और जब कभी भी कुछ भी पाकिस्तान में गलत हुआ, उसका सारा दोष येन- केन -प्रकारेण भारत पर थोपने की कोशिश करते रहे।



अगर कहा जाए कि हमारी कश्मीरी नीति में कहीं न कहीं कुछ न कुछ गड़बड़ रही है तो शायद गलत नहीं होगा लेकिन क्योंकि पुलवामा के हमलों के बाद यह एक संवेदनशील समय चल रहा है और पूरा ही देश बड़ी संख्या में बीएसएफ के जवानों को खोने से उबल रहा है। हर सीने में दर्द है और हर एक इस घटना का बदला लेने की बातें करता दिखाई दे रहा है तो अभी वह वक्त नहीं है कि राजनीतिक रूप से इस मुद्दे को अधिक उछालांे जाए बल्कि यह वह समय है जब हर भारतीय दल को सरकार के साथ सिर से सिर जोड़कर विचार मिलाते हुए हमारे सामने उपस्थित हुई इस चुनौती का जवाब देना है और अच्छी बात यह है कि पूरा विपक्ष इस मामले में सरकार के समर्थन में खुलकर सामने आया है हालांकि दोनों ही पक्षों के कुछ छुटभैय्या नेताओं ने अपनी दलगत नीतियों के चलते हुए इससे फायदा उठाने की नीयत से एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में भी गुरेज नहीं किया है लेकिन दूसरा अच्छा पक्ष यह भी है कि उसी दल के ही बड़े नेताओं ने अपने ऐसे छुटभैय्या नेताओं को दुरुस्त करने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया।



जिस प्रकार से यह हमला हुआ है, उससे गुस्सा बहुत स्वाभाविक है। आखिरकार हमने अपने जमा सपूत खोए हैं तो आंसू और अंगार एक साथ निकलने स्वाभाविक हंै परंतु कूटनीति कहती है कि बिना सोचे समझे उठाए गए कदम से लाभ कम और हानि अधिक होती है। मुझे लगता है कि वर्तमान हमला कहीं न कहीं इस बात का भी प्रतिफल बनकर आया है कि हमने सर्जिकल स्ट्राइक का मीडिया के माध्यम से जरूरत से कहीं अधिक प्रचार किया जिससे कट्टरतावादी तत्वों को आतंकियों को अपना नफरत का मोहरा चलाने में कहीं ज्यादा सहूलियत हुई और वे कश्मीर से ही आदिल जैसे युवा कम उम्र के और कम समझ वाले कुछ लोगों को जेहनी तौर पर इतना उत्तेजित करने में सफल हुए कि वह अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर अपने ही देश के खिलाफ अपने ही जवानों की जान लेने के लिए फिदायीन हमलावर हो गया।
जहां हमें ऐसी प्रवृत्तियों के खिलाफ सतर्कता की जरूरत है वही अपने ही मध्य पल रहे विभीषणों पर भी कड़ी निगाह रखने की जरूरत है। इतना ही नहीं, हमें यह भी तय करना होगा कि किसी भी हालत में हम ऐसे हालात पैदा न होने दे कि हमारे अंदर से ही विदेशों की एक फौज तैयार होकर दुश्मन के लिए काम करने लगे ।
बेशक , पुलवामा के साजिशकर्ताओं,  हमलावरों व रणनीतिकारों को और उन्हें प्रश्रय देने वाले लोगों को हमें पहचानना है और  कड़े से कड़ा ऐसा दंड भी देना है कि भविष्य में में इस प्रकार की योजना बनाने से पहले सौ बार सोचें । इसके साथ साथ हमारी सूचना तंत्रा प्रणाली और हमारे अर्ध सैनिक बल सेनाएं या पुलिस सभी को कहीं अधिक सजग और सन्नद्ध हो कर अपना कार्य इस प्रकार से करना होगा कि उनकी सूचनाएं बाहर न जाएं और जब सूचनातंत्रा से या खुफिया तंत्रा से कोई सूचना मिले तो उसको लापरवाही से न लें । इसके अतिरिक्त जहां कहीं पर भी उनकी तैनाती हो, वे वहां के आम जनों के मध्य इस प्रकार से अपनी छवि बनाएं कि उन्हें लगे सैनिक ये सिपाही यहां पर हमारे भले और हमारी रक्षा के लिए ही आए हैं । यदि कहीं कठोर कार्यवाही भी करनी पड़े तो भी इस प्रकार से की जाए कि यह साफ-  साफ संदेश जाए कि दोषी को बख्शा नहीं जाएगा लेकिन जो निर्दोष हैं उन्हें कोई कष्ट भी नहीं होने दिया जाए और उनकी सुरक्षा की पूरी और पुख्ता व्यवस्था की जाए।




अब जबकि हमारे प्रधानमंत्राी एवं गृहमंत्राी दोनों ही देश को आप आश्वस्त कर चुके हैं कि पुलवामा के शहीदों की शहादत को भी व्यर्थ नहीं जाने देंगे और चाहे देश के अंदर से या देश के बाहर से जिसने भी इस प्रकार का षड्यंत्रा रचा है और हमारे अर्धसैनिक बलों पर हमले का दुस्साहस किया है उसे और उसके आकाओं को बख्शा नहीं जाएगा तो निश्चित रूप से सेनाएं वक्त आने पर ऐसी कार्रवाई करेंगी इस पर अविश्वास नहीं आ जाए और न ही इस बात का अनावश्यक दबाव बनाया जाए कि तुरंत सूरत में हमला सर्जिकल स्ट्राइक या युद्ध जैसे हालात पैदा किए जाएं क्योंकि जो कार्य एक योजना बनाकर और रणनीति के साथ कम से कम नुकसान उठाते हुए किया जा सकता है वह बिना बात के जोश और होश को गुम कर नहीं किया जा सकता बल्कि उसमें नुकसान उठाने की संभावनाएं और भी बढ़ जाती हैं ।



साथ ही साथ हमें देखना होगा कि कहीं पाकिस्तान चीन आदि के साथ मिलकर जान- बूझकर तो किसी प्रकार की उकसाने की कार्यवाही नहीं कर रहा है कि हम जोश में आकर ,होश को भूलकर ऐसा कोई बड़ा कदम उठाएं कि बिना बात ही युद्ध की विभीषिका झेलनी पड़े लेकिन साथीा ही साथ इस बात से डरना भी नहीं है कि कोई ताकत की धोंस दिखाकर हमें डरा धमका सके या दबा सके।



फिलहाल तो शहीदों के घर में मातम पसरा है, वहां गम हैं,  आंसू हैं,  बेबसी है और साथ ही साथ उनके अंदर भी बदले की भावना धधक रही है।  हमें उनके परिवारों के जख्मों पर एक ऐसा मरहम रखना है कि वे आने वाली पीढ़ियों को भी सेना में आने से न रोकें और इस बात पर गर्व कर सकें कि उनके बेटों की शहादत देश के काम आई है और यह देश उनकी भावनाओं की पूरी कद्र करता है तथा उन्हें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा देने में न केवल सक्षम है अपितु पूरे मन से उनके साथ खड़ा है और इसके लिए सरकार और उसके अधिकारियों को कहीं अधिक संवेदनशीलता के साथ उन परिवारों के साथ खड़ा होना होगा उनके लिए उपयुक्त रोजगार नौकरी और रोजी रोटी का प्रबंध करना होगा।


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