राहुल के वादे और उनका गणित?


राहुल गांधी अब बदल गए हैं। वह अब पप्पू कहने या कहलाने लायक नहीं हैं। उन्होंने 4 राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब होकर अपने को परिपक्व सिद्ध कर दिया है। सफलता का स्वाद लेने के बाद वे और उनकी पार्टी में हिम्मत एवं हौसला बढ़ गया है। वह अब जोश - खरोश से भर गए हैं और लोकसभा चुनाव जीतने एवं नरेंद्र मोदी को मात देने के वादे पर वादे कर रहे हैं।  राहुल के वादे एवं उनका गणित उनको प्रधानमंत्री की कुर्सी के करीब ले जा रहा है।



राहुल गांधी को पप्पू किसी ने बनाया नहीं अपितु वह स्वयं अपनी हरकतों एवं क्रियाकलापों के चलते पप्पू बन गए किंतु 2014 से 2019 के दरमियान अब बहुत कुछ बदल गया है। राहुल गांधी 43 से  48वर्ष के हो गए हैं। राहुल ने कर्नाटक में दूसरे नंबर की पार्टी होकर भी अपनी कांग्रेस पार्टी की गठबंधन की सरकार बनाकर अपना रणनीतिक कौशल सिद्ध किया। उसके बाद चुनावी वायदों की बदौलत भाजपा के तीन गढ़ों  को ढहाकर  अपनी सरकार बना कर सफलता पाने का तरीका भी तलाश लिया।



2014 के राहुल उर्फ पप्पू अब 2019 में नरेंद्र मोदी एवं भाजपा को हराने तथा लोकसभा चुनाव जीतने हेतु घोषणा पत्र जारी करने के पूर्व ही वादे पर वादे कर रहे हैं। राहुल ने जिन चार राज्यों में उनकी सरकार बनी हैं वहां वादे पूरे कर अपनी पार्टी को चुनावी वादे पूरा करने वाली सिद्ध कर दिया।
राहुल गांधी केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में गरीबों को प्रति माह एक निश्चित राशि बेसिक इनकम देना चाहते हैं। देश में इस समय 55 से 60 करोड़ ऐसे मतदाता हैं जो किसान और गरीब परिवार से हैं वे इस वादे से प्रभावित हो सकते हैं। वादे के मुताबिक राहुल गांधी  महिलाओं को तीस प्रतिशत आरक्षण देना चाहते हैं। इससे देश की महिला मतदाता जो 45 करोड़ के आसपास है, वे प्रभावित हो सकती हैं।



वादे के अनुसार राहुल गांधी उन उद्योगों से जमीन वापस लेकर आदिवासियों को लौटाना चाहते हैं जो 5 वर्ष के भीतर उद्योग स्थापित नहीं कर पाए हैं। इस समय देश में 8 प्रतिशत आदिवासी मतदाता हैं और लोकसभा की 47 सीटें इनके लिए आरक्षित हैं एवं 80 सीटों पर इनका असर है, वे सब राहुल के इस वादे से प्रभावित हो सकते हैं।



वादे के मुताबिक राहुल गांधी बहुचर्चित तीन तलाक के कानून को रद्द करना चाहते हैं। देश में इस समय कुल 16 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं और 17 राज्यों में इनकी निर्णायक भूमिका है। वे इससे प्रभावित हो सकते हैं। कांग्रेस तीन तलाक पर अपने पूर्ववर्ती फैसले से 1 महीने के भीतर ही पलट गई। देश में लोकसभा की 145 सीटों पर 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। लोकसभा की 38 सीटों पर 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। 8 राज्यों में 15 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं जो इन राज्यों में लोकसभा की कुल 244 सीटों में  प्रभाव डाल सकते हैं।



राहुल के ये प्रमुख चार वादे व्यापक प्रभावकारी सिद्ध हो सकते हैं। मासिक बेसिक इनकम पाने के फेर में गरीब मतदाता कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। महिला आरक्षण से महिलाएं कांग्रेस के पाले में जा सकती हैं जबकि जमीन वापस पाने हेतु आदिवासी उनको वोट दे सकते हैं। तीन तलाक रद्द होने की उम्मीद को देखकर देश भर के मुस्लिम पुरुष मतदाता कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। वादे और उसके प्रभावी गणित के मद्देनजर राहुल एवं कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में बड़ा लाभ मिल सकता है और प्रधानमंत्री की कुर्सी राहुल के करीब जा सकती है। प्रसंगवश वादों को लेकर भाजपा के नरेंद्र मोदी पर से भरोसा उठ गया है जबकि कांग्रेस के राहुल गाँधी पर भरोसा कायम हो गया है।
 वादों को लेकर राहुल गाँधी एवं नरेंद्र मोदी के कार्यों को तुलनात्मक रूप से देखें तो राहुल की जो उपलब्धियां हंै वही नरेंद्र मोदी की खामियां हैं। नरेंद्र मोदी की इस खामी का खमियाजा भाजपा को आगे भुगतना भी पड़ सकता है। 2014 में देश में पूरी तस्वीर बदलने वाली जनता चाहे तो 2019 में एक बार फिर पूरी तस्वीर बदल सकती है किन्तु व्यक्तिगत तुलनात्मक देखें तो नरेंद्र मोदी की तुलना में राहुल गाँधी फिसड्डी हंै और भाजपा के अमित शाह जैसा योजनाकार कांग्रेस के पास नहीं है। नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की जोड़ी कोई भी तूफान खड़ा करने एवं किसी भी तूफान को थामने की क्षमता रखती है।