मुफ्त की घोषणाओं से रिझाने की कोशिश

आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में जब लगभग 6 माह ही शेष बचे हैं ऐसे में मौजूदा 'आप' की सरकार ने जैसे मुफ्त सुविधाओं का पिटारा ही खोल दिया है। पहले महिलाओं, छात्रों और बुजुर्गों को बसों तथा मेट्रों में मुफ्त सफर की घोषणा और अभी हाल में 200 यूनिट तक बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली की घोषणा से सबको सकते में डाल दिया है। भले ही इन घोषणाओं से जनता को बड़ा फायदा मिलने वाला है लेकिन प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस को इसकी काट नहीं सूझ रही है। गत लोकसभा चुनाव में सातों सीटें बड़े बहुमत से जीतने वाली भाजपा जहां इन घोषणाओं को चुनावी स्टंट बताकर अबकी बार दिल्ली की सत्ता पर मजबूत दावेदारी ठोक रही है वहीं वोट प्रतिशत में दूसरे नम्बर पर पहुंची कांग्रेस भी पूरे दमखम से चुनावी मैदान में उतरने का मन बना रही है। दिल्ली के इस चुनाव परिदृश्य में अबकी बार 'आप' का मुकाबला प्रमुख रूप से भाजपा से होना तय है और इस धुरी में अभी कितने आयाम जुडेंगे, यह देखना भी अभी बाकी है। गौरतलब है कि दिल्ली का विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ राष्टÑीय मुद्दों पर भी लड़ा जाता है। राष्टÑीय मुद्दों की बात करें तो भाजपा के खाते में हाल ही में जम्मू-कश्मीर में धारा-370 हटाने का मुद्दा जुड़ चुका है। जाहिर है दिल्ली के 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा भी इसे पूरे जोर-शोर से भुनाने में कोई कसर नहीं छोडेÞगी।


गत 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जिस ऐतिहासिक अंदाज से सत्ता पर कब्जा किया था, उसका दर्द भाजपा और कांग्रेस आज भी झेल रही है। इसकी वजह है कि दिल्ली में शुरू से ही भाजपा और कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। एकाएक चंद दिनों की आम आदमी पार्टी ने जिस तरह दोनों पार्टियों को धूल चटाई, उसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। पांच साल बाद इन दोनों पार्टियों को 'आप' से बदला लेने का मौका मिल रहा है। दूसरी ओर 'आप' अपनी पिछली जीत को बरकरार रखने के लिए हर चुनावी हथकंडा अपना रही है। 'आप' ने सत्ता संभालते ही हालांकि जनता से बड़े-बड़े वादे किये थे लेकिन पांचवे साल में कुछ वादों पर अमल से विपक्षी पार्टियों को उस पर हमला करने का एक बड़ा मौका मिल गया है। भाजपा की यह दलील है कि 'आप' की नियत ठीक नहीं है और वह दोबारा सत्ता पाने के लिए ये घोषणायें कर रही है। असल में दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में 'आप' ने 'बिजली हाफ पानी माफ' का नारा दिया था। यह नारा काफी असरदार भी साबित हुआ। शायद इसी नारे की सफलता से प्रेरित होकर ही पार्टी ने और एक कदम आगे बढ़कर 200 यूनिट तक बिजली माफ की घोषणा की है। 200 यूनिट तक बिजली की खपत के दायरे में दिल्ली की लगभग 67 फीसदी आबादी आती है। इस आबादी के सिर चढ़कर यह घोषणा बोल गई तो भाजपा के लिए फिर से वही मुश्किल आ सकती है।


यह सर्वविदित है कि दिल्ली में प्रमुख राजनीतिक पार्टी रही कांग्रेस अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। गत दो माह से जहां पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश जारी है वहीं 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष रहीं शीला दीक्षित के गत दिनों निधन से पार्टी नेता विहीन हो गई। दिल्ली की राजनीति में शीला दीक्षित ऐसी नेता थीं जो अपनी शख्सियत और विजन के चलते दोबारा सत्ता हासिल करने का माद्दा रखती थीं। असल में दिल्ली में दशकों से कांग्रेस गुटबाजी का शिकार रही और इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए ही पार्टी हाईकमान ने उत्तर प्रदेश की नेता शीला दीक्षित को दिल्ली में स्थापित किया था। अपनी काबिलियत से न सिर्फ उन्होंने पार्टी की गुटबाजी को खत्म किया बल्कि 15 साल तक सत्ता में भी बनाये रखा। पार्टी फिर आज ऐसे ही दोराहे पर खड़ी हो गई है। दिल्ली की राजनीति में क्षत्रप माने जाने वाले सज्जन कुमार जहां 84 दंगों में सजा काट रहे हैं वहीं जगदीश टाइटलर इन केसों को झेल रहे हैं। इसलिए दिल्ली कांग्रेस में एक बार फिर बाहरी नेता की तलाश चल रही है। जो तेजतर्रार होने के बावजूद पार्टी को एक नई दिशा देने में भी सक्षम हो। इस क्रम में पंजाब के नेता नवजोत सिंह सिद्दू का नाम सबसे आगे चल रहा है।


दिल्ली में दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए 'आप' ने उन सभी मुद्दों पर सिलसिलेवार अमल करने का फैसला किया है जिनकी घोषणा उसने 2015 में की थी। इस कड़ी में बड़ी संख्या में सीसीटीवी लगाने का काम चल रहा है और दिसम्बर के अंत तक दिल्ली की बड़ी आबादी को वाईफाई से लैस करने की तैयार भी चल रही है। 'आप' की यह सारी कवायद चुनावों में भी क्या असर दिखायेगी, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन जनता के लिए मुफ्त की सौगातों का दौर फिलहाल दिल्ली में जारी है।